बकरीद, जिसे ईद अल-अधा भी कहा जाता है, 2025 में 7 जून (शनिवार) को मनाई जाएगी। यह तारीख चाँद की दृष्टि के आधार पर थोड़ी भिन्न हो सकती है।
बकरीद का महत्व
- यह त्योहार पैगंबर इब्राहीम की उस इच्छा को याद करता है जब उन्होंने अपने बेटे को अल्लाह के आदेश पर बलिदान करने के लिए तैयार थे।
- यह बलिदान और दान की भावना को दर्शाता है।
उपचारण की प्रथाएँ
- मुसलमान आमतौर पर मस्जिद में प्रार्थना के लिए इकट्ठा होते हैं, और अपने सबसे अच्छे कपड़े पहनते हैं।
- इस त्योहार में एक जानवर की कुर्बानी दी जाती है, और उसका मांस परिवार, दोस्तों और जरूरतमंदों में बांटा जाता है।
- यह समय होता है आत्म-चिंतन, आभार और सामुदायिक बंधन का।

बकरीद, जिसे ईद अल-अधा भी कहा जाता है, इस्लाम का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इसकी खासियत और मनाने के कारण निम्नलिखित हैं:
खासियत:
- बलिदान की भावना: बकरीद का त्योहार पैगंबर इब्राहीम (अब्दुल्ला) की उस कहानी को याद करता है, जब उन्होंने अल्लाह के आदेश पर अपने बेटे इस्माइल को बलिदान करने के लिए तैयार हो गए थे। यह बलिदान की भावना को दर्शाता है।
- कुर्बानी: इस दिन मुसलमान एक जानवर (जैसे बकरी, भेड़, गाय या ऊंट) की कुर्बानी देते हैं। यह कुर्बानी अल्लाह के प्रति श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है।
- दान और साझा करना: कुर्बानी के मांस का एक हिस्सा परिवार और दोस्तों के साथ साझा किया जाता है, जबकि एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है। यह दान और सामुदायिक एकता को बढ़ावा देता है।
- प्रार्थना और सामूहिकता: बकरीद के दिन मुसलमान सामूहिक रूप से मस्जिदों में प्रार्थना करते हैं, जो एकता और भाईचारे का प्रतीक है।
मनाने के कारण:
- धार्मिक अनुष्ठान: बकरीद इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है, और इसे मनाना मुसलमानों के लिए अनिवार्य है।
- आध्यात्मिकता: यह त्योहार मुसलमानों को अपने विश्वास को मजबूत करने और अल्लाह के प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है।
- सामाजिक एकता: बकरीद का त्योहार समुदाय में एकता और भाईचारे को बढ़ावा देता है, जिससे लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर खुशियाँ मनाते हैं।

इस प्रकार, बकरीद केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि यह बलिदान, दान, और सामुदायिक एकता का
ईद अल-अधा, जिसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता है, की परंपरा इस्लाम के आरंभिक दिनों से जुड़ी हुई है। इसकी शुरुआत पैगंबर इब्राहीम (अब्दुल्ला) की कहानी से होती है, जो इस प्रकार है:
ईद अल-अधा की शुरुआत:
- पैगंबर इब्राहीम की कहानी: इस्लामिक मान्यता के अनुसार, अल्लाह ने पैगंबर इब्राहीम को एक स्वप्न में दिखाया कि उन्हें अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देनी है। इब्राहीम ने इस आदेश को स्वीकार किया और अपने बेटे को बलिदान करने के लिए तैयार हो गए। लेकिन जब वह इस कार्य को करने लगे, तो अल्लाह ने उन्हें रोक दिया और एक भेड़ को बलिदान करने का आदेश दिया। इस घटना ने बलिदान और श्रद्धा की भावना को जन्म दिया।
- कुर्बानी का महत्व: इस घटना के बाद, मुसलमानों ने इस दिन को मनाने का निर्णय लिया, जिसमें वे अल्लाह के प्रति अपनी श्रद्धा और समर्पण को दर्शाने के लिए जानवरों की कुर्बानी देते हैं। यह परंपरा इस्लाम के पहले दिनों से चली आ रही है और इसे हर साल हज के समय मनाया जाता है।
- हज का संबंध: ईद अल-अधा का त्योहार हज के दौरान मनाया जाता है, जो इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। हज के दौरान, मुसलमान मक्का में इकट्ठा होते हैं और इब्राहीम की इस कहानी को याद करते हैं।
- सामाजिक और धार्मिक एकता: ईद अल-अधा का त्योहार न केवल व्यक्तिगत बलिदान का प्रतीक है, बल्कि यह सामूहिकता, एकता और भाईचारे का भी प्रतीक है। इस दिन मुसलमान एक साथ प्रार्थना करते हैं और एक-दूसरे के साथ मिलकर खुशियाँ मनाते हैं।

इस प्रकार, ईद अल-अधा की परंपरा पैगंबर इब्राहीम की श्रद्धा और बलिदान की भावना से शुरू हुई, और यह आज भी मुसलमानों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहार है।
